Saturday 11 November 2017

चलता हुआ वादा ...

चाहे तो इसे ठहरा हुआ वादा भी कह सकते हैं ,,,
उसनेे एक दिन वादा किया ,,मेरे दिन रात ,,समय हर पल सब तुम्हारा है ,,
जब तुम शहर में आओगी तो लोग मुझे खोजेंगे की में गायब कहाँ हूँ ,,तुमसे मिलने ,बातें करने से फुर्सत मिले तब उनसे मिलूंगा ना ,
खैर !! ज्यादा इंतज़ार नही करना पड़ा मैं तुम्हारे शहर आ ही गयी ,, तुम आये मिले गए ,,,
मेंरे वक़्त को वही रोककर ,, फिर बात हुई तुमने कहा सुबह फ़ोन करता हूँ ,, मैने कहा ठीक है ,, सुबह बात हुई थोड़ी देर में करता हूँ ,,
थोड़ी देर सुबह से शाम जितनी बड़ी होती है ये जानने में वक़्त लगा मुझे  ,,
तुम यहां आते हो ,,मिल के जाते हो कुछ पल  ,,
घड़ी के कांटो के ऊपर बैठकर ,, बातें हमारी तब भी नही होती ,
फिर तुम जाकर फ़ोन करते हो ,, ये कहने को की सुबह बात करता हूँ ,,
ये वादा जो तुमने किया था वो टुटा नही है ,, बस टाला जा रहा है आगे ,, तब तक टाला जाएगा जब तक वो दिन न आये जब मैं ये शहर छोड़ दूं ,,,  ओर हाँ मेने उस रविवार के सपने देखना छोड़ दिया है जिसके लिए तुमने कहा था सिर्फ तुम्हारा होगा ,,
और अब यहां नही आऊँगी कभी ,, इस शहर के सपने भी नही देखूंगी ,,
मुझे नफरत है इस चलते हुए वादे वाले शहर से ....

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