Saturday 17 December 2016

मेरा ख़त "मेरे घर "को

4 दिन हुए पापा की भुआ आयी थी घर में ,
    "मेरे घर की सबसे बड़ी बेटी"
86 वर्ष की उम्र है ,
न आँखों में रौशनी है न कानो में आवाज़ ,,
आज जाते वक़्त उन्होंने कहा - मुझे पूरा घर घुमा दे ,,
मेरे पापा मेरे भाई का घर है पता नही अब यहां आ भी पाऊं या नही ,,
उन्होंने हर कमरे की हर दीवार को छू छू कर खुद में उतारा ,,भीगी आँखों से ,,
वो स्पर्श उनमें अब तक जीवंत है ,,कैसा अजीब सा रिश्ता है ये ,

इन दीवारों की धड़कन सुन रही हो जैसे वो...

उनके एक एक शब्द में लाखों दुआएं थी जैसे ,

जब इतने वर्षों में इनका मोह न छूटा तो मैं तो घर को ढंग से जी भी नही हूँ अब तक,,
जहाँ जिस आँगन में ,  मैं जीजी भैय्यू साथ खेल कर बड़े हुए,,

जिस कमरे की दीवारों दरवाजो को हमने अपने नाम ,,
सोरी थैंक यू से लिख कर भरा है ,
उस कमरे को नही छोड़ना ,
ये कैसी ख़ुशी है !! जो अपनों को छोड़कर मिलती है,

ये कैसी रीत है !! जहाँ आशियाँ बनाओ और छोड़ जाओ ,

मुझे ये खुशियां नही चाहिए पापा ,,

मुझे यहीं रहना है इसी घर में...

खैर !! सोच टूट गयी मेरी ,,
भुआ जाते हुए गाना गा रही थी रोने से रोक नही पाई खुद को
                   "साड़ा चिड़ियाँ दा चम्बा वे ,
                        बाबुल असाँ उड़ जाना !!!

Wednesday 12 October 2016

अँधेरा ...

तुमने मुझे उन्ही अंधेरो में वापस लाकर छोड़ दिया है जहाँ से निकालने के लिए हाथ थामा था मेरा...
मैं हूँ ना!!!
ये शब्द मेरी दुआओ से बढ़ कर हो गए थे...
तुम हो ना कैसा डर.....
तुम नही थे छोड़ गए...
पर तुम्हारे ना होते हुये खुद को तुम्हारे होने का एहसास दिलाते दिलाते खुद का होना छुट गया पीछे...
जहाँ ना जाना सम्भव है ना मुड़ कर देखना भी ...
डरती हूँ अब...
अहसासो से वादों से बातो से....
और तुमसे...
बहुत डरती हूँ तुमसे..
नही कहती कुछ डर है कब रूठ जाओ कब छोड़ जाओ.....
वो मन का एक छोटा सा कोना होता है ना जहाँ अनकही बातो को संजो कर रखते है...वो कोना अब कमरा हो गया है
वही कमरा जहाँ पुराना सामान याद के तौर पर सिर्फ रखने भर को खुलता है....
तुम सुनते नहीं ..पूछते भी नहीं..जाने कितनी बाते भर गयी है मन में अब....
बिखर जाएगा कभी..बिखरना ही है...कब तक कुछ रहेगा जबरदस्ती...
कब तक वो सिर्फ संभालेगा..
मौसम के बदलने पर पेड़ो को भी पहाड़ो की ओट में सुरक्षा महसूस होती है....
फिर खुद से डर कर खुद का भागना...
नामुमकिन है ना....
हाँ खुद से क्योंकि डर तुमसे है और मैं तुम ही तो हो गयी हूँ अब...
पहचानती नहीं अब....खुद पर इतना तरस कभी नही खाया मैंने...
टूटी हुई चप्पलें सिर्फ दर्द ही देती है ...
मुश्किल सफर है...
शायद इसलिए छोड़ गए तुम यहां.. चल नही पाते..कमज़ोर हो तुम....डरपोक भी, साहस नहीं है तुममे प्यार करने का, लड़ने का सबसे,,
अच्छा है....मैं वहीँ हूँ तो क्या...तुम बढ़ गए ना आगे...तुम बढ़ते रहना....खुश हूँ मैं...खुश रहूँगी मैं.....क्योंकि खुश हो ना तुम ऐसे....खुश रहो बस.....खुश रहो..

Tuesday 20 September 2016

इकतरफा.....

लड़का सभी कवि और शायरो को पढ़ कर अपनी प्रेम कहानी वैसी ही बनाते जा रहा था ...
जानबूझ कर दूरियां बढ़ाता ,
उसने कभी कहा नही पर
लड़की जानती थी वो अपनी प्रेम कहानी को वैसी ही उनकी तरह समझता था....

ग़ालिब या और भी उसके मोहब्बत के मसीहा..
जो दूर रहकर नज़्म लिख कर प्यार में खुद एक किताब बन गए थे....

लड़का यही चाहता था , इश्क़ में कहानी बनना पर लड़की कमज़ोर थी ,
ऊपर से किसी पूरी नज़्म की तरह चहकती पर अंदर से शब्द शब्द बिखरी हुई.....

लड़के के पास काम था ,शराब थी, नज़्म थी और किताबें थी

और लड़की के पास तो खुद वो भी नहीं थी.. इससे बड़ी सजा कोई क्या देगा मोहब्बत में की जान भी ले ली और ज़िंदा भी छोड़ दिया ...

वो उसी के लिए उसके शहर आयी थी , लड़के के अनुसार सिर्फ मिलना प्यार की परिभाषा नही थी , लड़की की सोच अलग थी ,

लड़की चाहती कुछ नही बस लड़का उसे दम भर देख ले....ऐसे की लड़की को लगे बस आज ही इसी पल में मौत आ जाये और मर कर वो उसकी अमर नज़्म बन जाये... 

वो पूरी तरह से इश्क के दायरे में थी, लड़का सरहद पर था मर्ज़ी से इश्क के अंदर बाहर का संतुलन रखता , लड़की अकेली दोनों हो रही थी इश्क़ में ....

खैर कुछ रिश्ते यूँ भी खत्म होते है .....हर अंत हसीन नही होता....
:))

Sunday 26 June 2016

तस्वीर तेरी ....

अक्सर सोचती हूँ देख कर तस्वीर तेरी ,
जो तुझसे मोहब्बत ना होती तो क्या होती ज़िन्दगी मेरी ,
कई बेमंज़िल राहों पर भटकती ,
तन्हाई से भी तन्हा रहती ,
वादों कसमो पर हँसती ,
नहीं सिख पाती अकेले में मुस्कुराना ,
अल्फाज़ो का दरिया होकर भी खामोश रहती ,
तेरे इंकार का डर नही है मुझको ,
शुक्र है किसी से मोहब्बत करी ,
जिस खुदा की रोज अरदास करती
उसी खुदा के अक्स की तुझमे इबादत करी ,
जो तू ना होता तो महसूस ना करती इन हवाओ को ,,
खुद में रहकर खुद से ही अनजान होती
बिन तेरे नाराज़ रहती हर ख़ुशी से.....
अक्सर सोचती हूँ देखकर तस्वीर तेरी ,
जो तुझसे मोहब्बत ना होती तो क्या होती ज़िन्दगी मेरी....

Tuesday 31 May 2016

तुम्हारा साथ

तुमने कभी नहीं कहा तुम साथ हो मेरे ,,
पर यही सुना हर वक़्त मैंने !!!
कभी लगता है हाथ बढ़ा रहे हो तुम
ज़ख्म सहलाने को मेरे ,,,
फिर अगले ही पल
पीछे खिंच लेते हो हाथ को,
शरीर और आत्मा के बिच
दर्द की एक गुत्थी बन जाती है
दिल की जगह पर शायद ,,!!
हर दिन जैसे हारता है रात से
और रोज उजाला लड़ने को फिर उठता है ,,, 
वैसे ही खुद से भीड़ कर ,
जग से लड़ कर,,
अगली सुबह दोबारा
आस लगाती हूँ तुमसे ,,
 मगर यह क्या है ,
जो तुमसे चाहूँ मैं , 
वह हिम्मत जो
खुद को ना दे पाऊं तुमसे माँगू मैं......

Saturday 23 April 2016

तुम्हारा होना

कभी चाहती हूँ
       मैं भी तुमको लिखना ,
पर तुम तो हो खामोश !!
तुम्हे लिखना उतना मुश्किल है
    जितना तुम्हारे बिन बोले तुमको सुनना
      मैं कह दूँ तुमको
तुम भरे हुए हो मेरी आत्मा में,
      रूह का अक्स हो मेरा ,
तितली के स्वप्न से,
      तुम सुन रहे हो दूर से मुझे
फिर भी आवाज़ मेरी नहीं
      पहुँच रही है तुम तक,,
तुम्हारी ख़ामोशी सितारे जैसी है
       जो दूर तो है पर सत्य भी है ,,
रौशनी सी निर्मल शांति जिसने
       घेर लिया है मुझे चारो और से,,
ये जो गूंज रही है
       मेरे चारो तरफ
क्या ये तुम्हारी ख़ामोशी है....
   या तुम्हारा 
    ना होके भी मेरी रूह में होना !!!!