4 दिन हुए पापा की भुआ आयी थी घर में ,
"मेरे घर की सबसे बड़ी बेटी"
86 वर्ष की उम्र है ,
न आँखों में रौशनी है न कानो में आवाज़ ,,
आज जाते वक़्त उन्होंने कहा - मुझे पूरा घर घुमा दे ,,
मेरे पापा मेरे भाई का घर है पता नही अब यहां आ भी पाऊं या नही ,,
उन्होंने हर कमरे की हर दीवार को छू छू कर खुद में उतारा ,,भीगी आँखों से ,,
वो स्पर्श उनमें अब तक जीवंत है ,,कैसा अजीब सा रिश्ता है ये ,
इन दीवारों की धड़कन सुन रही हो जैसे वो...
उनके एक एक शब्द में लाखों दुआएं थी जैसे ,
जब इतने वर्षों में इनका मोह न छूटा तो मैं तो घर को ढंग से जी भी नही हूँ अब तक,,
जहाँ जिस आँगन में , मैं जीजी भैय्यू साथ खेल कर बड़े हुए,,
जिस कमरे की दीवारों दरवाजो को हमने अपने नाम ,,
सोरी थैंक यू से लिख कर भरा है ,
उस कमरे को नही छोड़ना ,
ये कैसी ख़ुशी है !! जो अपनों को छोड़कर मिलती है,
ये कैसी रीत है !! जहाँ आशियाँ बनाओ और छोड़ जाओ ,
मुझे ये खुशियां नही चाहिए पापा ,,
मुझे यहीं रहना है इसी घर में...
खैर !! सोच टूट गयी मेरी ,,
भुआ जाते हुए गाना गा रही थी रोने से रोक नही पाई खुद को
"साड़ा चिड़ियाँ दा चम्बा वे ,
बाबुल असाँ उड़ जाना !!!