Tuesday 20 September 2016

इकतरफा.....

लड़का सभी कवि और शायरो को पढ़ कर अपनी प्रेम कहानी वैसी ही बनाते जा रहा था ...
जानबूझ कर दूरियां बढ़ाता ,
उसने कभी कहा नही पर
लड़की जानती थी वो अपनी प्रेम कहानी को वैसी ही उनकी तरह समझता था....

ग़ालिब या और भी उसके मोहब्बत के मसीहा..
जो दूर रहकर नज़्म लिख कर प्यार में खुद एक किताब बन गए थे....

लड़का यही चाहता था , इश्क़ में कहानी बनना पर लड़की कमज़ोर थी ,
ऊपर से किसी पूरी नज़्म की तरह चहकती पर अंदर से शब्द शब्द बिखरी हुई.....

लड़के के पास काम था ,शराब थी, नज़्म थी और किताबें थी

और लड़की के पास तो खुद वो भी नहीं थी.. इससे बड़ी सजा कोई क्या देगा मोहब्बत में की जान भी ले ली और ज़िंदा भी छोड़ दिया ...

वो उसी के लिए उसके शहर आयी थी , लड़के के अनुसार सिर्फ मिलना प्यार की परिभाषा नही थी , लड़की की सोच अलग थी ,

लड़की चाहती कुछ नही बस लड़का उसे दम भर देख ले....ऐसे की लड़की को लगे बस आज ही इसी पल में मौत आ जाये और मर कर वो उसकी अमर नज़्म बन जाये... 

वो पूरी तरह से इश्क के दायरे में थी, लड़का सरहद पर था मर्ज़ी से इश्क के अंदर बाहर का संतुलन रखता , लड़की अकेली दोनों हो रही थी इश्क़ में ....

खैर कुछ रिश्ते यूँ भी खत्म होते है .....हर अंत हसीन नही होता....
:))