एक दिन काटना ,,
एक पहाड़ सा दिन अकेले काटना कितना मुश्किल है ,
ये उससे बेहतर कौन जानेगा जिसके कमरे में एक आईना तक नही की खुद से ही थोड़ी बात कर ले ,
गुलज़ार ने कहा है कि "वक़्त काटना क्या मुश्किल है !! वक़्त के इतने हिस्से करो फिर उनके इतने "
बेशक ये मुमकिन होता पर तब जब ये हो पाता ,,
हम चाहे वक़्त के कितने ही हिस्से कर ले, लेकिन उस वक़्त का हर एक पल तुम्हारे सीने पर उसी पहाड़ सा रहेगा ,,
"भारी ओर निष्ठुर "
अकेले वक़्त काटना उस पानी सा गहरा है जिसमे बहुत गंदगी है ,,
सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता से भरा हुआ ,,
अकेलापन तुम्हे धकेलता है एक गहरी अंधेरी खाई में ,
जहाँ दम घुटता है ,
ओर धीरे धीरे वक़्त थम जाता है ..!!
तुम लाख किताबे पढ़ लो , हज़ार नग्मे गुनगुना लो , कई कविताएं लिख डालो ,
पर जब कई घंटों बाद घड़ी देखोगे तब भी वक़्त का एक ही पहर बीता होगा ,,
अभी बाकी के पहर भी तो बिताने है ,
मन को कही दूर भागने से बचाना है ,, उसे खाली हाथ , थका हुआ ,मायूस नही देखना चाहती मैं ,,
अब यही खत्म करती हूं , कबसे लिख रही हूं और देखो दो पल ही गुज़रे है !!
खैर !!! वक़्त काटना क्या मुश्किल है ... :))
Thursday 13 July 2017
" एक दिन "
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"हम चाहे वक़्त के कितने ही हिस्से कर ले, लेकिन उस वक़्त का हर एक पल तुम्हारे सीने पर उसी पहाड़ सा रहेगा,"भारी ओर निष्ठुर "
ReplyDelete"कबसे लिख रही हूं और देखो दो पल ही गुज़रे है"
बहुत उम्दा लिखा नवाबज़ान. वक़्त काटने और अकेलेपन के बारे में कुछ कहता, पर अभी तो यही समझ लो कि वक़्त के भारीपन को बहुत संज़ीदगी से बयां किया है तुमने|
Thank you so much ☺☺
ReplyDeleteओ ऐ वख़्त जरा और आहिस्ता से गुजर
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