Wednesday 28 June 2017

"उर्मिला " सी मोहब्बत

इंतज़ार की हद अब बहुत हो गई ,
बिन तुम्हारे जीने की जद्दोजहद बहुत हो गई ,
सुख गया है आँखो का नमक भी अब ,
लौट आओ की एतबार की भी हद हो गई ,..!!
           जाने कितने मौसम गुज़रे इंतज़ार में तुम्हारे ,
           जाने कितने त्योहारो में हँसने के दिन भी रो के गुज़रे,
तुम बिन ना जीवन मे श्रृंगार है ,
ना ही कोई रोशनी !!
हथेलियों की रची हुई मेहंदी हर बार फीकी रचती है ,
हर रोज़ आँखों के काले घेरे पर दुनिया सवाल करती है ,
   जाने कितनी आहटों पर भागी जाती हूँ दरवाज़े पर ,,
   जाने कितनी करवटों में ढूंढती हूँ तुम्हारा आलिंगन ,
हर बार निवाला पेट मे जाता है ,,
और जाते हुए हर निवाले के साथ कलेजा मुंह को आता है ,,
   जाने कितनी बार अपने कांपते हाथों पर खुद का ही हाथ रखा है मैंने ,
जाने कितनी बार खुद को खुद के ही साथ रखा है मैंने !!
    पल पल जो गुज़र रहा है बिन तुम्हारे  ,,  
   मेरे अंदर कई सदियां गुज़ारता जा रहा है ,,
मुझे यकीन है तुम सिर्फ मेरे हो ,,
फिर भी देखो ना अकेले ही कटती जा रही है ज़िन्दगानी मेरी,
    लम्हा -लम्हा इंतज़ार की किश्त उम्र भर चुकानी है ,
    मुझे शायद ये उम्र तुम्हारे बगैर ही बितानी है !!