Tuesday 31 May 2016

तुम्हारा साथ

तुमने कभी नहीं कहा तुम साथ हो मेरे ,,
पर यही सुना हर वक़्त मैंने !!!
कभी लगता है हाथ बढ़ा रहे हो तुम
ज़ख्म सहलाने को मेरे ,,,
फिर अगले ही पल
पीछे खिंच लेते हो हाथ को,
शरीर और आत्मा के बिच
दर्द की एक गुत्थी बन जाती है
दिल की जगह पर शायद ,,!!
हर दिन जैसे हारता है रात से
और रोज उजाला लड़ने को फिर उठता है ,,, 
वैसे ही खुद से भीड़ कर ,
जग से लड़ कर,,
अगली सुबह दोबारा
आस लगाती हूँ तुमसे ,,
 मगर यह क्या है ,
जो तुमसे चाहूँ मैं , 
वह हिम्मत जो
खुद को ना दे पाऊं तुमसे माँगू मैं......