तुमने मुझे उन्ही अंधेरो में वापस लाकर छोड़ दिया है जहाँ से निकालने के लिए हाथ थामा था मेरा...
मैं हूँ ना!!!
ये शब्द मेरी दुआओ से बढ़ कर हो गए थे...
तुम हो ना कैसा डर.....
तुम नही थे छोड़ गए...
पर तुम्हारे ना होते हुये खुद को तुम्हारे होने का एहसास दिलाते दिलाते खुद का होना छुट गया पीछे...
जहाँ ना जाना सम्भव है ना मुड़ कर देखना भी ...
डरती हूँ अब...
अहसासो से वादों से बातो से....
और तुमसे...
बहुत डरती हूँ तुमसे..
नही कहती कुछ डर है कब रूठ जाओ कब छोड़ जाओ.....
वो मन का एक छोटा सा कोना होता है ना जहाँ अनकही बातो को संजो कर रखते है...वो कोना अब कमरा हो गया है
वही कमरा जहाँ पुराना सामान याद के तौर पर सिर्फ रखने भर को खुलता है....
तुम सुनते नहीं ..पूछते भी नहीं..जाने कितनी बाते भर गयी है मन में अब....
बिखर जाएगा कभी..बिखरना ही है...कब तक कुछ रहेगा जबरदस्ती...
कब तक वो सिर्फ संभालेगा..
मौसम के बदलने पर पेड़ो को भी पहाड़ो की ओट में सुरक्षा महसूस होती है....
फिर खुद से डर कर खुद का भागना...
नामुमकिन है ना....
हाँ खुद से क्योंकि डर तुमसे है और मैं तुम ही तो हो गयी हूँ अब...
पहचानती नहीं अब....खुद पर इतना तरस कभी नही खाया मैंने...
टूटी हुई चप्पलें सिर्फ दर्द ही देती है ...
मुश्किल सफर है...
शायद इसलिए छोड़ गए तुम यहां.. चल नही पाते..कमज़ोर हो तुम....डरपोक भी, साहस नहीं है तुममे प्यार करने का, लड़ने का सबसे,,
अच्छा है....मैं वहीँ हूँ तो क्या...तुम बढ़ गए ना आगे...तुम बढ़ते रहना....खुश हूँ मैं...खुश रहूँगी मैं.....क्योंकि खुश हो ना तुम ऐसे....खुश रहो बस.....खुश रहो..
Wednesday 12 October 2016
अँधेरा ...
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Nice heart touching
ReplyDeleteKeep going
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